वक्त से ना हारा जाता है, ना जीता जाता है, सिर्फ सीखा जाता है-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

  वक्त बडा बलवान होता है। वक्त ही हमारा बहुत बडा शिक्षक है, बहुत बडा डाक्टर है और बहुत बडा मार्ग दर्शक है। महापुरूषों ने इसीलिए कहा कि कि वक्त से ना हारा जाता है, ना जीता जाता है। वक्त से केवल सीखा जाता है। हर व्यक्ति को वक्त की कद्र करना चाहिए।
यह सीख परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने दी। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने वक्त की महिमा बताते हुए कहा कि सीखने की जिज्ञासा लेकर जो चलता है, उसे वक्त सिखाता ही चला जाता है। वक्त से जो नहीं सिखता, वह यूं ही रह जाता है। उन्होंने कहा कि संसार की जो शिक्षा स्कूलों में, कालेजों में और गुरूकुलों में नहीं सिखाई जाती है, उसे वक्त सिखा देता है। वक्त की नजाकत को जो समझता है, वहीं समझदार होता है।

आचार्यश्री ने कहा कि जिसका जैसा एंगल होता है, उसे वक्त से वहीं सीख मिलती है। एक पिता से बच्चा बुराईयों को ग्रहण भी कर सकता है और बुराईयों के परिणाम देखकर उनसे दूर रहने के संकल्प भी ले सकता है। वक्त ही हमारी प्रेरणा का स्त्रोंत होता है। इससे मिली सीखे व्यक्ति को महान बना सकती है, इसलिए हमारे अंदर वक्त से सीखने की पात्रता और योग्यता होना चाहिए। वक्त से जो सीख नहीं लेता, उसे पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं मिलता।

आचार्यश्री ने कहा कि दिन, महीने, साल और साल-दर-साल गुजरने के साथ उम्र बीत जाएंगी। यदि वक्त से सीखना है, तो समय रहते सीखो और आगे बढों। सत्संग से जीवन को प्रकाशवान बनाओ और तप, त्याग तथा संयम के मार्ग पर चलकर जीवन को सफल बनाओ। आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने संबोधित किया। उन्होंने जीवन मंे धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर महाराष्ट्र से आए रत्नागिरी महिला मंडल सहित बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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