आज का आदमी मामूली व्यक्ति पर श्रद्धा रखता है लेकिन परमात्मा पर नहीं। हमें नाई, वकील, डॉक्टर पर, घरवालों पर श्रद्धा है लेकिन भगवान पर नहीं है। यदि हमें प्रभु पर श्रद्धा होगी तो डर नहीं लगेगा। हमारे जीवन का प्लेन चलाने वाले प्रभु है तो फिर डरने की क्या जरूरत है। भगवान के पास जाओ तो ऐसी श्रद्धा रखो, जैसे कोई बच्चा अपने पिता पर रखता है।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में प्रवचन में कहीं। मुनिराज ने कहा कि सबसे पहले भगवान के पास जाना चाहिए और उनकी शरण में समर्पण भाव रखना चाहिए। दुनिया भर के तत्व शरण में है। वह हमें कैसे शरण देंगे। एक पत्थर अगर शिल्पी को समर्पित होता है तो वह मूर्ति बन जाता है। आकाश में बादल घिरते हैं और नीचे मयूर नाच उठता है, इसे समर्पण कहते हैं।
मुनिराज ने कहा कि संबंध हमेशा दूध और पानी जैसा होना चाहिए, तेल और पानी जैसा नहीं। तेल और पानी में आत्मीयता है लेकिन समर्पण नहीं होता है। दूध और पानी में समर्पण है कि यदि तू मेरे लिए अपना रूप छोड़ रहा है तो मैं तुझे अपना रूप दूंगा और पानी भी बाजार में दूध के मोल बिक जाता है।
मुनिराज ने कहा कि हम समर्पण में कमजोर हैं लेकिन यदि तीन चीज लाएंगे तो वहां अपने आप आ जाएगा। समर्पण लाने के लिए पुकार करो, प्रार्थना करो और प्रतीक्षा करो। जब भी प्रभु के पास जाओ तो उन्हे पुकारो। प्रार्थना भगवान और भक्त को जोड़ने वाला पुल है। ईश्वर से बात करने के लिए प्रार्थना टेलीफोन नंबर है। याचना में भाव कम होकर शब्द अधिक होते हैं और प्रार्थना में शब्द कम और भाव ज्यादा होते हैं। भक्त के जीवन में परिवर्तन आए इसके लिए प्रार्थना होती है। याचना के ऊपर प्रार्थना और प्रार्थना के ऊपर ज्ञान होता है। हम बोले और प्रभु सुने वह प्रार्थना है। प्रभु बोले और हम सुने यह ज्ञान है।
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी द्वारा आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।