गांधीजी और शास्त्रीजी  जितने भी महापुरूष  हुए  वे रूची जागने से हुए एक्सपर्ट-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

संसार में जितने भी महापुरूष हुए है, वे अपने अंदर रूची जागने से एक्सपर्ट हुए। महात्मा गांधी और लाल बहादूर शास़्त्री भी रूची जागी, तो मन की अवस्था में परिवर्तन आया और वे एक्सपर्ट हुए। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर सबकों अपने मन की अवस्था में परिवर्तन लाने और धर्म, साधना, संयम के प्रति रूची जगाने का प्रयास करना चाहिए।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए उन्होंने गांधी और शास्त्री जयंती पर महापुरूषों के जीवन को आदर्श मानकर उनके बताए मार्ग पर चलने का आव्हान किया। आचार्यश्री ने कहा कि गांधी जी ने सत्य और अहिंसा से देश को विदेशी दासता से मुक्त कराया, जबकि शास्त्रीजी ने सादगी की मिसालें पेश की। उनके भीतर मन की अवस्था बनाने की रूची थी, तो वे ऐसा कर पाए। हमे भी अपने जीवन को सार्थक करना है, तो रूची जगाना पडेगी। मन की अवस्था बिना रूची और आस्था के नहीं बदलती है, इसलिए रूची का जागरण करो।
आचार्यश्री ने कहा कि मन सबके पास है और मन जब मतवाला हो जाता है, तो अपनी अवस्था को बिगाडने वाला बन जाता है। मन पर नियंत्रण रहे, तो सारी व्यवस्थाएं बदल जाती है। मन की व्यवस्थाएं बदलना भले ही हमारे हाथ में नहीं हो, लेकिन मन की अवस्था को हम बदल सकते है। यदि मन की अवस्था में संयम हो,तो व्यवस्था भी वैसी ही बनेगी। संयम जीवन को सार्थकता प्रदान करता है, जबकि असंयम मृत्यु को भी निरर्थक कर देता है। मन बहानेबाज होता है और संकल्प से ही उसे मजबूती मिलती है। संकल्प साधक का कल्पवृक्ष होता है। इसके नीचे बैठने से सारी अपेक्षाएं पूरी हो जाती है। संकल्प होगा, तो रूची जागेगी और रूची से ही व्यक्ति एक्सपर्ट बनता है।
आचार्यश्री ने कहा कि धार्मिक, बौद्धिक, आर्थिक हो या आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में रूची से ही आगे बढा जा सकता है। संसार सुख का आश्वासन देता है और दुख का अनुभव कराता हैं। संसार से विरक्त होकर संयम के पथ से ही सभी अपना आत्म कल्याण कर सकते है। आरंभ उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारंग सूत्र पर प्रवचन दिए। इस मौके पर महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने 14 उपवास एवं मंदसौर से आई सुनीता मोगरा ने 26 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। हरियाणा श्री संघ के नेमीचंद जैन एवं वसई श्री संघ के बलवंत बाफना ने चातुर्मास की विनती की। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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