चर्म दृष्टि, ज्ञान दृष्टि नहीं बनेगी, तब तक नहीं होगा मन विशुद्ध -आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

व्यक्ति दृष्टि से चर्म को देखता है, ज्ञान को नहीं देखता। ज्ञान ही अंर्तमन को विशुद्ध करता है। मनुष्य भव में अंर्तमन की विशुद्धि जब तक नहीं होगी, तब तक अशुद्धि बनी रहेगी। चर्म दृष्टि को ज्ञान दृष्टि बनाने पर ही मन विशुद्ध होगा।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। शुक्रवार को छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने सन्मति के गुणों पर चर्चा करते हुए कहा कि सम्यक ज्ञान सन्मति का पहला गुण है। संसार में ज्ञान ही सबकुछ होता है,यदि ज्ञान नहीं होगा, तो मनुष्य भटकता ही रहेगा। बाहरी शुद्धि, शुद्धि नहीं होती, हमे अंर्तमन की शुद्धि पर ध्यान देना चाहिए। यह शुद्धि सत्संग से हो सकती है, इसलिए जीवन में जब भी मौका मिले, तब सत्संग अवश्य करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि हमारे अंर्तमन को मोह, माया अशुद्ध बनाते है। इनका त्याग करते ही मनुष्य विशुद्ध बन जाता है। महापुरूषांे ने इसीलिए सत्संग में मन रमाने पर जोर दिया है, क्योंकि उम्र का कोई भरोसा नहीं है। संसार में उम्र जब भी बडी होती है, तब जिदंगी छोटी होती जाती है। सभी शास्त्रों में मन की विशुद्धि पर जोर दिया गया है। सम्यक ज्ञान का फलित विशुद्ध मन होता है। सत्संग में रहकर ज्ञान दृष्टि का जागरण करेंगे, तभी सम्यक ज्ञान होगा और विशुद्ध मन का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन किया। आचार्यश्री से महासती श्री मोहकप्रभाजी मसा ने 22 उपवास, सुश्राविका सुनीता बोहरा ने 29 उपवास एवं सिद्धी तप कर रही रूपाली मेहता ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। संचालन हर्षित कांठेड ने किया। इस दौरान सैकडों श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।

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