छोटू भाई की बगीची में प्रवचन -दुर्मति के दोषों का किया विवेचन
भारतीय संस्कृति में वासुधेव कुटुम्बकम का भाव निहित है। जिनका चित्त उदार होता है, उनके लिए सारा संसार ही कुटुम्ब होता है, लेकिन जो उदार नहीं होते, वे मैं और मेरा करते रहते है। संकीर्णता दुर्गंध है और विस्तृतता सुगंध है। जो सुख विस्तृतता में है, वह संकीर्णता में नहीं है। जैसे कुंए के मैंढक को नहीं पता होता, कि समुद्र क्या है। वैसे ही संकीर्ण सोच वाला विस्तृतता का मतलब नहीं जानता। कुंए के मैंढक मत बनो, विस्तृतता से अपने जीवन का कल्याण करो। यह आव्हान परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने किया। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान दुर्मती के दोषों का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि संसार में दो प्रकार की मनोवृत्ति संकीर्णता और विस्तृतता होती है। संकीर्णता दुर्मती का दसवां दोष है, जिसमें व्यक्ति कठोर, सूक्ष्म और बंदिशों में बंधा रहता है। इसके विपरीत विस्तृतता उदार, व्यापक एवं गहरी होती है। संकीर्णता के दोष से बचने के लिए दिल को बडा बनाना पडता है। क्योंकि जिसका दिल, दिमाग और शब्द बडे होते है, वह संकीर्णता मंे नहीं पडता। शरीर और मकान से बडा होना बडी बात नहीं होती, अपितु दिल से बडा होना ही विस्तृतता है।
आचार्यश्री ने कहा कि यह धारणा गलत है कि पैसे वाले बडे होते है, जिनके पास अमीरी का सुख नहीं है, उनका दिल भी बहुत बडा होता है। देश में विचरण के दौरान गांव में जितनी सेवा साधु-साध्वी की होती है, उतनी शहरों में नहीं करते। शहरी सोचते है कि दूसरा कर लेगा, लेकिन ग्रामीण मैं करूंगा का भाव रखते है। भारत की आत्मा आज भी गांवों में बसती है, लेकिन जितना शहरीकरण हो रहा है, उतना ही लोगों का दिल छोटा होता जा रहा है। यहीं संकीर्णता है। इसमें व्यक्ति जिससे स्वार्थ पूर्ति होती हो, उसके तलवे भी चाट लेता है और स्वार्थ पूरा नहीं हो, तो सगे माता-पिता को भी घर से निकाल देता है।
आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान में शिक्षा बढी है, लेकिन संस्कार घट रहे है। दुर्मति व्यक्ति कों संकीर्ण बना देती है। संकीर्णता का दोष दुर्मति के सारे दोषों को प्राणवान बनाता है,इसलिए यदि इससे मुक्त हो जाओ, तो सारे दोषों से मुक्त बन जाओगे। आरंभ में उपाध्याय प्रवर, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि जहां आसक्ति है, वहीं उत्पत्ति है। इसलिए आसक्त नहीं बने और जीवहिंसा से बचे। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। प्रवचन के दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण मौजूद रहे।
महासती श्री निरूपणाश्रीजी मसा का मासक्षमण
प्रवचन के दौरान महासती श्री निरूपणाश्रीजी मसा ने आचार्यश्री से 31 उपवास के प्रत्याख्यान लेकर मासक्षमण की दीर्घ तपस्या पूर्ण की। इससे पूर्व आचार्यश्री एवं उपाध्यायश्री ने उनके कठोर तप की अनुमोदना की। कठोर तपस्विनी महासतीजी ने भी भाव व्यक्त किए। इस अवसर पर आचार्यश्री से श्रुत अभ्यासी श्री नमनप्रिय मुनिजी मसा ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं द्वारा बैले-तेले, अठठाई आदि की तपस्या की जा रही है।