गलत संस्कार, गलत अनुराग और गलत अभ्यास प्रभु के माध्यम से टूटेंगे – मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.

जब कभी आपको अहंकार आए तो आप महापुरूषों को याद करो। किसी की पीड़ा में यदि आपको आनंद मिलता है तो वह गलत है। यदि आपमें ताकत है, तो दूसरों के दुख को दूर करो। यदि आप ऐसा न करके खुश होते है तो वह प्रवृत्ति लोक निंदनीय होती है। आपके अंदर के गलत संस्कार, गलत अनुराग और गलत अभ्यास प्रभु के माध्यम से ही टूटेंगे।

यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने निंदनीय प्रवृत्ति के प्रकारों पर प्रकाश डालते हुए कही। मुनिराज ने कहा कि यदि हमे गलत का अनुराग होगा तो अभ्यास भी गलत का होगा। क्योकि जीवन में जिसका अनुराग होता है, अभ्यास भी उसी का होता है, फिर चाहे वह सही हो या फिर गलत। यह हमे धर्म स्थान पर भी नहीं छोड़ता है।

मुनिराज ने कहा कि गलत संस्कार हमेशा हमे गलत मार्ग पर ही ले जाएंगे। हमे मानव भव मिला है, इसमें प्रभु की भक्ति करना चाहिए। लोक विरोधी प्रवृत्ति का त्याग करना चाहिए। यह सोचना चाहिए कि जिस राष्ट्र में आप रहते है, उसकी प्रगति कैसे हो, उसे कैसे श्रेष्ठ बनाए। हम चाहे जिस देश में रहे, उसका तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए। कभी किसी की मदद करो तो गिनाओ मत।

मुनिराज ने कहा कि हमे कभी किसी भी धर्म का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। यह लोक निंदनीय होता है। यदि किसी को दान दो तो वह भी मत गिनाओं। हमारा स्वभाव होता है कि हम थोड़ा सा दान देकर उसे गिनाते है, जो गलत है। दान दो और भूल जाओ। अपने मुंह से अपनी तारीफ करके बढ़पपन नहीं दिखाना चाहिए। ऐसा करने से भी आपकी निंदा होती है।

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