आलस्य, अनुशासनहीनता, मुफतखोरी और अपव्यय, अपराध की जड- आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

                                     नवकार भवन में सत्संग की प्रेरणा

पाप जहां होता है, वहां अपराध पनपता है। पाप और अपराध दोनो सहगामी है। अपराधों के चार कारण आलस्य, अनुशासनहीनता, मुफतखोरी और अपव्यय है। इन्हीं चार कारणों से पाप और अपराधों की श्रृंखला शुरू होती है। अपराधों से बचने का एकमात्र मार्ग सत्संग है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने नवकार भवन में कही। पर्यूषण पर्व के पांचवे दिन उन्होंने कहा कि अपराध बोध प्राप्त करने वाला मानव अपराध मुक्त हो जाता है। अपराध का बोध होने तक उनसे मुक्ति का प्रयास नहीं होता। आज पाप और अपराध से सभी दुखी है, लेकिन उनका बोध प्राप्त नहीं कर रहे है। ये बोध सत्संग में प्राप्त होता है। इसलिए हर मानव को सत्संग करना चाहिए। सत्संग में इतनी ताकत है कि वह मनुष्य की तकदीर और तासीर सबकुछ बदल देता है।
उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने इस मौके पर अधिक से अधिक तप,त्याग और तपस्याएं करने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि देवकी माता अपने बच्चों को दुध नहीं पिला पाने की पीडा थी, लेकिन आजकल की नारियों में इसका अभाव है। वे अपने बच्चों का नैसर्गिक भोजन छीनकर उन्हें बचपन में बोतल पकडा देती है। इसका नतीजा ये होता है, वे बडा होकर वहीं बच्चा बोतल का आदि होकर व्यसनी बन जाता है। पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट के मुताबिक जो औरतें अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाती, उन्हें स्तन कैंसर होता है। बच्चें को जो मां-बाप बचपन में समय नहीं देते, वहीं बडा होकर अपने माता-पिता को समय नहीं देता है।
उन्होंने कहा कि संसार में मनुष्य खाली आता है और खाली ही जाता है। लेकिन तप और त्याग की पूंजी हमेशा साथ रहती है। इसलिए अधिक से अधिक इस पूंजी का अर्जन करना चाहिए, ताकि यह भव भी सुधरे और दूसरे भव भी सुधर जाए। आरंभ में श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया। किरण पिरोदया ने 6 उपवास, रीना मेहता ने तेले और अन्य श्रावक-श्राविकाओं ने अलग-अलग तपस्या के प्रत्याख्यान लिए।

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