शमशान, सागर, पेट और लोभ का गड्ढा कभी नहीं भरता- आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा.

प्रभु ने हमें सब कुछ दिया, लेकिन हमे वह कम लगता है। हमें जो मिला है, उससे संतुष्ट होना चाहिए लेकिन संतोष प्राप्त नहीं होता है। इसीलिए महापुरूषों ने कहा कि जीवन में चार प्रकार शमशान का, सागर का, पेट का और लोभ का  गड्ढा कभी नहीं भरता है, चाहे इसमें कितना ही कुछ क्यो डाल दिया जाए।

यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कही। मोहन टाकीज, सैलाना वालों की हवेली में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि मुक्तिधाम में कितने ही शव आते है और जलते है लेकिन फिर भी वहां शव आना बंद नहीं हुए। इसी प्रकार सागर में अनेकों नदियां आकर मिलती है, उसमें समाहित हो जाती है लेकिन फिर भी सागर ने कभी उन्हे अपने से मिलने से नहीं रोका कि वह अब उन्हे अपने में समाहित नहीं कर सकेगा। ठीक इसी तरह से हम जन्म से लेकर आज तक भोजन करते आ रहे है लेकिन हमारा पेट भूखा ही रहता है।


आचार्य श्री ने कहा कि शमशान, सागर, पेट के बाद लोभ का गड्ढा भी ऐसा ही है। मनुष्य जीवन में हमें भले सब कुछ मिल गया हो, लेकिन हमारी लालसा यहीं रहती है कि और मिले। हमारा लोभ कभी खत्म नहीं होता है। हमने कभी यह नहीं कहा कि मेरे पास पर्याप्त धन-संपत्ति है, अब मुझे और नहीं चाहिए। यहीं कारण है कि इस भव में हम निरंतर भटकते रहते है। एक योनी से दूसरी योनी, एक भव से दूसरे भव की ये हमारी यह यात्रा कभी खत्म ही नहीं होती है।

आचार्य श्री ने कहा कि संसार के कीचड़ में यदि हम कमल की तरह जीए तो हम ज्ञानी है और कीचड़ की तरह जीए तो अज्ञानी कहलाएंगे। साधु-साध्वी को देखकर आमजन के मन में चार प्रकार के भाव एंग्री, एलर्जी, मर्सी और जैलसी आते है। कई लोगों को साधु को देखकर गुस्सा आता है। कुछ लोग साधु-साध्वी से दूरी बनाते है, तो कुछ में उन्हें देखकर दया का भाव उत्पन्न होता हैं। ठीक ऐसे ही कई लोगों को ईष्या भी होती है। इस संसार से जाने में दुख कम और सुख अधिक है।

प्रवचन के दौरान श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के सदस्यों सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे।

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